यहीं रजनीश ओशो बने थे



पता नहीं आजकल स्कूलों में बंद कमरों में ही पड़ाई क्यों कराई जाती है?? शायद अपनी मंहगी फीस को सही ठहराने के लिये प्राइवेट स्कूलों को ये करना जरूरी जान पड़ता हो, पर सरकारी स्कूलों के साथ ऐसी कौन सी बाध्यता है। अधिक बारिश वाले दिनों में वैसे भी स्कूलों में रेनी डे के नाम पर छुट्टी करने का प्रचलन है। फिर आखिर क्यों नहीं खुले आसमान के नीचे, हरियाली और ताजी हवा में पढ़ाई कराई जाती है। इतिहास गवाह रहा है हर महापुरुष को ज्ञान किसी न किसी पेड़ के नीचे ही मिला है। अब जब बच्चों को कमरों में बंद कर दिया गया है तो महापुरुष कहाँ से होंगे। 

पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त करने का जिक्र करने पर सबके दिमाग में बुद्ध और बोधगया का नाम कौधां होगा। बिहार के गया में एक पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध को ब्रह्मज्ञान प्राप्त हुआ था, जो बाद में बोधी वृक्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 
महावीर को भी ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति एक शाल वृक्ष के नीचे हुई थी। 

खैर आज खुले में पढ़ाई की पुरातनपंथी राग का अलाप अचानक एक विद्रोही के चलते करना पड़ रहा। विद्रोही का नाम है रजनीश जिसके अनुसार 21 मार्च 1953 को जबलपुर के भंवरताल बगीचे में एक वृक्ष के नीचे बैठकर उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हुई, जिसके बाद वो रजनीश न रहा बल्कि ओशो बन गया। ओशो जो कुछ लोगों के लिये भगवान है। ओशो जिसने समाजवाद, साम्यवाद और गांधी का खुला विरोध उस दौर में किया जब सरकार हो या विपक्ष सब इन्ही लाइनों पर चलती थी। ओशो जो भारत से अमेरिका तक चुनी हुई सरकारों की आंख की किरकिरी रहा। ओशो जिसे अमेरिका से निकाले जाने पर 21 देशों ने लेने से मना कर दिया। ओशो जिसके अनुसार भगवान सिर्फ एक है - स्वयं का जीवन। ओशो जो शायद धार्मिक गुरुओं में सबसे अलग सोचने वाला था। 

जबलपुर आने पर भेड़ाघाट के अलावा और कुछ खास सुना न था। भेड़ाघाट जाना अभी न हो पाया पर शाम को होटल से निकलते वक्त जब रिसेप्शन के पास जबलपुर में घूमने/देखने वाली जगहों की तस्वीर देखी तो उसमें एक वृक्ष की तस्वीर भी थी जिसके नीचे लिखा था osho tree दूरी 1 किमी। ये तो बिना प्रयास बेहतरीन मौका मिलने जैसा हो गया, फिर क्या था हम चल पड़े वो पेड़ देखने जिसकी छांव तले ओशो का जन्म हुआ। 

ओशो वृक्ष भंवरताल नामक बाग में है जो गोंडवाना की रानी दुर्गावती के द्धारा जबलपुर में बनवाये गये 85 तालों में से एक है।भंवरताल के अंदर हाथी पर युद्ध के लिये तैयार अवस्था में बैठी रानी दुर्गावती की मूर्ति है। मूर्ति के नीचे एक पत्थर लगा है जिसपर तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा का नाम लिखा है। द्वारिका प्रसाद मिश्रा के पुत्र ब्रजेश मिश्रा देश के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे थे। 

भंवरताल बगीचे पर एक बोर्ड लगा है जिसपर बगीचे का नाम मोतीलाल नेहरू भंवरताल पार्क लिखा है। अब मोतीलाल नेहरू का जबलपुर या इस ताल से क्या लेना देना ये तो पता नहीं पर मानस अपनी पसंद का नाम खुद ही रख लेती है, तभी मोतीलाल नेहरू के नाम पर इस पार्क को बस ये बोर्ड ही जानता है। 

भंवरताल बगीचे का रखरखाव जबलपुर नगर निगम ने बेहद अच्छे से कर रखा है। पार्क के अंदर ही स्केटिंग रिंग है जहाँ मुफ्त में स्केटिंग सीखने की सुविधा है। इसलिये भविष्य में कभी भी जबलपुर आना हो तो ओशो वृक्ष देखने का मौका बिल्कुल जाने मत दीजियेगा। वैसे भी इसकी दूरी जबलपुर रेलवे स्टेशन से बमुश्किल 2 किमी होगी। 

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