भीम जन्मभूमि - महू


भले ही स्वंतत्र भारत में संविधान लागू 26 जनवरी 1950 को हुआ हो पर आज की ही तारीख में 26 नंवबर 1949 को संविधान स्वीकार किया गया था। वैसे तो संविधान का निर्माण मुख्य रूप से सात सदस्यों वाली ड्राफ्टिंग कमेटी ने किया था जिसमें अलादी कृष्णस्वामी, एन गोपाला स्वामी, भीमराव अंबेडकर, के.एम. मुंशी,मोहम्मद सादुल्ला, बी.एल.मिटर और डी.पी. खेतान शामिल थे पर संविधान का नाम लेते ही जिस एक व्यक्ति का चेहरा जनमानस के दिमाग में घूमने लगता है वो है भीमराव अंबेडकर। 

14 अप्रैल 1891 को सूबेदार रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई सकपाल की 14 वीं संतान का जन्म हुआ जिसने आगे चलकर स्वंतत्र भारत को उसका संविधान देने में महती भूमिका निभाई। अंबेडकर का परिवार मूलतः महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबादवे गाँव से था। अपने भाई बहनों में भीमराव एकलौते थे जो स्कूल पास करके हाईस्कूल की परीक्षा में शामिल हुये। भीमराव जाति से महार (दलित) थे और उनके पिता नाम के बाद अपनी जाति सकपाल लिखते थे। किन्तु दलितों के प्रति होने वाले भेदभाव को देखते हुये उन्होने भीमराव के नाम के आगे उनके गाँव से मिलता अंबड़ावेकर स्कूल में लिखवा दिया। भीमराव के स्कूल के एक अध्यापक थे कृष्ण केशव अंबेडकर जो जाति से ब्राह्मण थे उन्होने अपनी जाति भीमराव के नाम के आगे स्कूल में लिखवा दी। इस तरह भीमराव का पूरा नाम भीमराव अंबेडकर पड़ा। 

भीमराव अंबेडकर के जन्म के समय उनके पिता परिवार सहित इंदौर के पास महू नामक स्थान में रहते थे। महू मिलिट्री क्षेत्र था और रामजी सकपाल सेना में सूबेदार के पद पर कार्यरत थे। अभी कुछ दिन पहले 31 अक्टूबर 2018 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,सरदार पटेल की मूर्ति का लोकार्पण कर रहे थे तो ठीक उसी दिन मैं भीम जन्मभूमि महू में बने स्मारक में था। सरदार पटेल के नाम पर तो मूर्ति के पहले भी काफी कुछ बना था पर अंबेडकर के जन्मस्थान पर स्मारक बनाने में देश ने कई साल लगा दिये। अंबेडकर की मुत्य 6 दिसंबर 1956 को हुई थी पर उनके स्मारक बनाने का कार्य उसके 35 साल बाद शुरू हुआ। 14 अप्रैल 1991 को तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदर लाल पटवा ने अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी बाजपेयी की उपस्थिति में स्मारक का उद्घाटन किया। बाद में स्मारक को और भब्य स्वरूप प्रदान किया गया जिसका लोकार्पण 14 अप्रैल 2008 को हुआ। 

जब पिछले साल इंदौर रुका था तो भीम जन्मभूमि जाना रह गया था इसलिये इस बार महू जाना पहले से तय कर रखा था। भीम जन्मभूमि महू मिलिट्री क्षेत्र के अंदर स्थित है। मैं भीम जन्मभूमि अपने बैंक में कार्यरत एक कर्मचारी के साथ पहुँचा जो महू का ही रहने वाला है। 

भीम जन्मभूमि पहुंचने पर आपको गुंबद नुमा इमारत के बीच में भीमराव अंबेडकर की मूर्ति दिखेगी। सूट बूट पहने, बांये हाथ में संविधान पकड़े और दाहिने हाथ की उंगली से सत्य का मार्ग दिखाते बाबा साहेब जीवन्त प्रतीत होते हैं। भीम जन्मभूमि के बाहर किसी हिन्दू धर्म स्थल की तरह जूता चप्पल बाहर निकालने के आदेश का बैनर टंगा है, ये अलग बात है कि बाबासाहेब ने बाद में बौद्ध धर्म धारण कर लिया था। भीम जन्मभूमि दो मंजिला गुंबद नुमा इमारत है जिसमें ऊपरी तल पर जाने के लिए सामने की ओर से दो सीढ़ियां हैं। सीढ़ी ठीक सामने देखकर मैं पहले ऊपरी तल पर ही चला गया। ऊपरी तल पर भीमराव अंबेडकर के जीवन से संबंधित चित्रों की प्रर्दशनी है। जिसमें कुछ चित्र उसी वक्त के तो कुछ बाद में पेंट करके बनाये गये हैं। भूतल में अंबेडकर दम्पति की आदमकद प्रतिमा है। यही पर मुम्बई से लाई गयी अंबेडकर की राख भी रखी है। 

इंदौर जैसे बड़े शहर के बेहद नजदीक होने के बावजूद भीम जन्मभूमि में आने वाले लोगों की संख्या बेहद कम है। इसके अलावा यहां पर अंबेडकर से संबंधित साहित्य की उपलब्धता भी होनी चाहिये।

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