स्टेट्यू आफ यूनिटी यात्रा भाग 2

भाग 2
27 जनवरी 2019
अब दिन था दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति देखने का जिसके लिये बीते दिन की मजेदार यात्रा की थी। स्टेच्यु आफ यूनिटी की घोषणा 2010 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार के दस साल पूरे होने पर किया था। 
31 अक्टूबर 2013 को सरदार पटेल के 138 वें जन्मदिन पर स्टेच्यु आफ युनिटी का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। वैसे नरेंद्र मोदी को बाद में मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री बनाने में इस मूर्ति का भी बड़ा योगदान रहा था। क्योंकि सरदार पटेल ही वो नेता थे जिन्होंने आजादी के बाद 562 रियासतों को साम, दाम, दंड, भेद कैसे भी करके भारत में मिलाकर आज का भारत बनाया था। उनके इसी दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व के चलते उन्हें लौहपुरुष के नाम से जाना जाता है। इस मूर्ति को बनाने के लिये और साथ ही आम जनमानस को अपने से और अधिक जोड़ने के लिये नरेंद्र मोदी ने लोहा संग्रह करने के लिये पूरे देश में कैंपेन चलाया। सरदार पटेल के आर्शीवाद की बदौलत प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी की अनेकों प्राथमिकताओं में सर्वोपरि सरदार को सबसे ऊँचा स्थापित करना था। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने 2014-15 के केन्द्रीय बजट से मूर्ति के लिए 200 करोड़ का प्रावधान कर दिया। केन्द्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना होने के नाते कई कंपनियों के CSR फंड से भी अच्छा पैसा आ गया। इन सारी सहूलियतों के चलते अततः 31 अक्टूबर 2018 को दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति जनता के दर्शन के लिये पूरी तरह से खुल गयी। 
सुबह लगभग 9 बजे हम चार लोग स्टूच्यु आफ यूनिटी के लिये निकले। क्योंकि गाड़ी चलाने वाला व्यक्ति स्थानीय था तो हमें हाईवे के बजाय गाँव के रास्ते से ले गया। वैसे तो मूर्ति दूर से ही दिखने लगी पर रास्ते में जब पुल पड़ा तो वहाँ पर मूर्ति के बैकग्राउंड के साथ फोटो लेना जरुरी जान पड़ा। चूंकि छुट्टियों के दिनों टिकटों की मारामारी रहती और आनलाइन टिकटें कुछ मिनटों में ही उड़ जाती है इसलिए हमारी राजपीपला शाखा के प्रबंधक ने काउंटर से ही एक्स्प्रेस टिकट ले रखने को वहीं के एक आदमी को बोल रखा था। 
स्टेच्यु आफ युनिटी को देखने के लिये तीन दामों की टिकट लगा रखी है। पहली टिकट 120 रुपये की जिसमें आप सिर्फ नीचे खड़े होकर मूर्ति को निहार सकते हैं। ये टिकट लेने से अच्छा आप वो 120 रुपये भी अपनी जेब में संभाल कर रखिये और मूर्ति चेकपोस्ट के पहले सड़क से ही निहार लीजिये। दूसरी टिकट 350 रुपये की है जिसमें आप म्यूजियम से लेकर व्यू गैलरी तक सब घूम सकते हैं। सामान्य दिनों में यही टिकट लेना सबसे बेहतर है। तीसरी टिकट 1000 रुपये की है जिसे एक्स्प्रेस टिकट कहते हैं। इसमें आप वही सब देख सकते हैं जो आप 350 रुपये वाली टिकट में देख सकते हैं, फर्क बस उतना ही है जितना राजधानी एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेन में होता है। जहाँ 350 की टिकट में आपको 2-2 घंटे के स्लाट में जाना पड़ता है वही एक्स्प्रेस टिकट दिन भर के लिये रहती है। 350 की टिकट में आपको लाइन में लगना पड़ता है वही एक्स्प्रेस टिकट में आप धड़धड़ाते हुये हर जगह आ जा सकते हैं। लोग लाइन में लगे रहे और आप निकल जाये तो बड़मनई या वीआईपी टाईप फीलिंग भी आती रहती है। एक्स्प्रेस टिकट का असल लाभ सरदार पटेल के हृदय स्थल तक जाने के लिये लिफ्ट में होता है, क्योंकि भीड़ के मुकाबले लिफ्ट में बेहद सीमित जगह होती है। अब सारी बातों के बाद सामान्य सलाह ये कि अगर आप त्यौहार या भीड़ वाले दिनों पर न जा रहे तो 350 का टिकट लेना श्रेयस्कर रहेगा। 
टिकट के साथ हमारी गाड़ी की भी अंदर जाने परमीशन ले रखी थी तो हम सीधे स्टेच्यु आफ युनिटी के आगे बनी पार्किंग पर पहुँचे। अगर आप गाड़ी से नहीं आये या गाड़ी आगे जाने की परमीशन नहीं है तो वहाँ स्टेच्यु तक ले जाने और ले आने के लिये एसी बसें उपलब्ध हैं जिनका 30 रुपये का किराया टिकट के साथ ही ले लिया जाता है। कुल मिलाकर एक बार सिर्फ वहाँ पहुँच जाईये बाकी व्यवस्था चकाचक। 
खैर अंदर गये तो सामने विशालकाय सरदार खड़े थे। क्योंकि सरदार के हृदय स्थल पर लगी खिड़की से नीचे का नजारा देखने की मारामारी सबसे अधिक थी तो हमने सीधे उधर का ही रुख किया। लिफ्ट से ऊपर जाने पर थोड़ी दूर स्थित वैली आफ फ्लावर और सरदार सरोवर बांध अच्छे से दिखाई देते हैं। मूर्ति के आसपास की खूबसूरती ऊचांई से और बेहतर लग रही थी। कुल मिलाकर सरदार के हृदय स्थल से बाहर का नजारा बेहद खूबसूरत है और अंदर सिर्फ लोगों के खड़े होने की जगह के अलावा कुछ नहीं|

हृदय स्थल के बाद लिफ्ट से हम वापस नीचे आकर सीधे सरदार पटेल के जीवन दर्शन पर आधारित संग्रहालय में गये| संयोग से मेरा सरदार पटेल के जन्म स्थान खेड़ा और उनके निवास स्थान करमसंड जाना पहले ही हो चुका था इसलिये उनके जीवन काल के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी थी। 

गुजरात में सामान्यतः लोग सिर्फ सोमनाथ/द्वारका यात्रा के लिए आते थे। फिर मोदीजी ने कच्छ चमकाया जहां आदमी तो दूर, जानवर भी दूर दूर तक नहीं दिखते थे। अब स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से गुजरात के आदिवासी बहुल इलाकों को गुलजार कर दिया। अगर यहीं मूर्ति किसी बड़े शहर में या उसके आसपास बनती तो उसके विकास में इसका योगदान सीमित होता, पर यहां पर यह मूर्ति बड़े बदलाव का वाहक बन रही। मूर्ति बनाने में पैसा भी बहुत लगा, जिससे स्कूल या अस्पताल भी बन सकते थे, जैसे बेसिर पैर के सवाल इस क्षेत्र के बारे में जानने समझने के बाद मन में बिल्कुल नहीं आयेंगे। कुलमिलाकर अब भारत में देखने घूमने की सबसे जरूरी जगहों में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी जरुर होनी चाहिए।


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