यहाँ आकर उदयपुर भूल जायेंगे
पिताजी की घूमने और साथ पूरे परिवार को घुमाने की बेहतरीन आदत के चलते भारत के उत्तर पूर्व के अलावा कुछ ही राज्य हैं जहाँ अपने कदम न पड़े थे, उनमें से ही एक था अपने प्रदेश यानि उत्तर प्रदेश का सीमावर्ती राज्य छत्तीसगढ़। फिलहाल 28 सितम्बर 2018 को ये वर्तमान से भूत रह गया जब हम भोपाल से सुबह सबेरे अमरकंटक एक्सप्रेस से विलासपुर पहुंचे। विलासपुर छत्तीसगढ़ राज्य का दूसरा सबसे बड़ा शहर है पर मेरे जैसे घुमक्कड़ को इस जगह ने निराश किया। मैं तो छत्तीसगढ़ जल, जंगल और जमीन यानि प्राकृति का साथ खोज रहा था और विलासपुर के आसपास ऐसा कुछ नहीं दिखा। अधिक पूछने पर हर कोई अमरकंटक का नाम बताता पर वहाँ जाना कुछ कारणवश नहीं हो पाया।
खैर कल विलासपुर से कोरबा आना हुआ। कोरबा कोयले के लिये प्रसिद्ध है यहाँ की गेरवा खान एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान है। मन में आया चलो कुछ न सही तो कोयला खदान ही देखकर आयेंगे आखिर एक नया अनुभव होगा। वैसे कोयला खदान कौन देखने आता होगा, मुझे देखकर शायद खदान वालों को कोयला टूरिज्म प्रमोट करने का ख्याल आता जाये। यहाँ दक्षिण पूर्व कोल माइंस कोयला उत्पादन करती है और इसी कोयले के चलते एनटीपीसी, बालको और कई फैक्टरियाँ यहाँ धुआँ उगल रही।
कल शुक्रवार का दिन था और शनिवार, रविवार छुट्टी तो पहले यही सोचा था कि छुट्टी यहाँ रहकर बर्बाद नहीं करनी। लेकिन फिर कोरबा रुकने का निर्णय ये सोचकर लिया कि आज आराम करते हैं बाकी का कल सोचेंगे। ब्रांच से शाम को निकलते वक्त कोरबावासी एक स्टाफ विनय ने कहा अगर आप बाईक से घूमना चाहे तो मैं आपको कल गेवरा खान घुमाता हूँ। अब उसे ये कौन बताये कि अधिकतर तो हम बाईक से ही चलते हैं। विनय बैडमिंटन खिलाड़ी है और लगातार चार साल छत्तीसगढ़ स्टेट चैम्पियन रह चुका है। मैंने उसे सुबह होटल आने को बोल दिया।
सुबह करीब नौ बजे फोन आया कि गेवरा खान में कुछ काम लगा है इसलिये वहाँ चलना संभव नहीं पर मैं आपको बढ़िया जगह घुमाता हूँ। वो करीब दस बजे होटल आया फिर हम उस बढ़िया जगह घूमने निकल गये जो कोरबा से करीब 40 किमी दूर था। कोरबा शहर से बाहर निकलने के बाद वैसा दृश्य दिखने लगा जैसा मैंने छत्तीसगढ़ आते वक्त सोचा था। सकरी बिना भीड़भाड़ वाली सड़क अगले बगल घने पेड़ और पहाड़। इतनी दूरी में खेत काफी कम दिखे।
शहर से बाहर निकलने पर कई किमी तक सड़क खस्ताहाल थी पर आगे पहुंचने पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बोर्ड दिखा और वहाँ से सड़क भी सपाट हो गयी। विनय ने बताया पीछे की सड़क की देखभाल की जिम्मेदारी दक्षिण पूर्व कोल माइंस की है। बात बात में सरकार और सरकारी सिस्टम को कोसने वालो को ये देखना चाहिये।
सुहाने रास्ते पर एक दूसरे से बक बक करते और रास्ता पूछते हम आखिर अपनी मंजिल पहुँच ही गये नाम था सतरंगा। नजदीक पहुंचने के बाद महसूस हुआ कि जब प्रकृति की बनाई खूबसूरत जगह पर भीड़ नहीं पहुचती तो वो ऐसे ही स्वच्छ और शुद्ध होती है। कुछ बारह बज रहे होंगे और वहाँ हमारे अलावा पर्यटक के नाम पर कोई न था। वहाँ बैठने की न कोई सुविधा थी न खाने पीने की कोई दुकान। खैर इंसान और उसके प्रशासन के द्धारा कुछ भी न करने के बावजूद इस जगह की खूबसूरती आपको सब इग्नोर करने पर मजबूर कर देगी।

अतं में मन न मानने पर मैनें पैंट मोड़ी और थोड़ा अंदर पानी में गया नीचे पानी में डूबा पैर बिल्कुल साफ नजर आ रहा था। पूरी झील में सिर्फ एक नाव दिख रही थी जो शायद मछली पकड़ने के चक्कर में वहाँ चक्कर लगा रही थी। खड़े खड़े मन में आया कि इतनी खूबसूरत जगह भारत के पर्यटन नक्शे पर आखिर क्यों नही है फिर लगा नहीं है शायद इसीलिये इतनी खूबसूरत है।
वहाँ से आगे विनय मुझे एक और बढ़िया जगह घुमाने ले गया जिसके बारे में विस्तार से अगली पोस्ट में।
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