कोयले की हवा वाला शहर




दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण और सांस न ले सकने वाली हवा की चर्चा लगभग हर दो चार महीने में देशभर में टीवी पेपर से लेकर आम जनता के बीच हो ही जाती है, विशेष रूप से सर्दियों के समय हरियाणा के किसानों द्धारा खेतों में पुवाल जलाने के चलते दिल्ली हरियाणा सरकार में वार्षिक झाय झाय जरूर हो जाती है। वैसे भी शुद्ध हवा, शुद्ध पानी किसी भी सरकार के एजेंडे में ही नहीं है, और हो भी क्यों इस देश की जनता को शुद्ध हवा और शुद्ध पानी न मिलने पर सरकार से कोई शिकायत भी नहीं। अपने अपने घर में आरओ लगाकर शुद्ध पानी और एयर पयूरिफायर लगाकर हम संतुष्ट हो जाते हैं। कितना अजीब है जो चीज प्रकृति ने बिल्कुल मुफ्त में दी उसे भी बाजार हमें खरीदने पर मजबूर कर रहा है और आम आदमी बाजार को मजबूत करके खुश हो रहा। 

राजधानी होने की वजह से कम से कम दिल्ली के प्रदूषण की चर्चा तो होती है पर दिल्ली से हजार किमी दूर कोरबा की हवा में फैले प्रदूषण की चर्चा करने की जरूरत भी देश को महसूस नहीं होती। कोरबा जहाँ भारत ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदान है, कोरबा जो भारत की पावर ( बिजली वाला) कैपिटल कहलाता है। कोरबा जो देश के कई हिस्सों में रोशनी फैलाकर खुद कोयले की कलिमा में डूबा रहता है। 

कोरबा शहर में  वो BALCO भी है जो देश में एल्युमिनियम उत्पादन करने वाली पहली सरकारी कंपनी थी। 2001 में BALCO सरकारी से प्राइवेट हो गयी। सरकारी कंपनियों को प्राइवेट हाथों में बेचने के लिये ही अरुण शौरी राजग सरकार में मंत्री बने थे। फिलहाल BALCO का मालिकाना हक अनिल अग्रवाल की वेदान्ता के पास है। गेट पर ही अनिल अग्रवाल की मुस्कराती तस्वीर ये अहसास दिलाने के लिये काफी है। 

कोरबा पहुँचते ही आपको हवा में कोयले की अनुभूति होने लगती है। हवा में कोयला, पानी में कोयला और जमीन में कोयला। कोरबा में मिट्टी का रंग लाल है ये मुझे शहर से बीस किलोमीटर दूर जाकर पता चला नहीं तो शहर के सड़कों के बगल की मिट्टी आपको काली ही नजर आयेगी। कोयले की अलावा हसदेव नदी की वजह से कोरबा में पानी भी प्रचुर मात्रा में है। बिजली पैदा करने में उपयोगी कोयले-पानी का काकटेल ही कोरबा को बिजली राजधानी बनाता है। प्रचुर मात्रा में कोयले और पानी की उपलब्धता के चलते  NTPC और अन्य कई कंपनियों ने कोरबा को अपना ठिकाना बनाया। 

ऊपर फोटो में जो पुल की सड़क से जुड़ी 5 फीट मोटी जगह दिख रही उसमें नहर से आता पानी बह रहा। नदी भी अपनी किस्मत पर रो रही होगी कि ठीक नीचे वो सूखी पड़ी है और उसी के ऊपर बने पुल पर पानी बह रहा। 

नहर का पानी सीधे प्लांट में जाता है और कोयला खदान से मालगाड़ी द्धारा पहुँचता है। यहाँ NTPC, SECL, BALCO, LANCO, CSEB समेत कई कंपनियों की अपनी टाउनशिप है जिसके चलते कोरबा जनसंख्या के हिसाब से छत्तीसगढ़ का तीसरा सबसे बड़ा नगर बनता है। ये दीगर बात है कि सब नौकरी में रहते अपना खुद का घर कोरबा में न बनाकर विलासपुर या रायपुर में बनाते हैं। कोरबा छत्तीसगढ़ को सबसे अधिक रेवेन्यू देने वाला जिला होने के बावजूद खुद पिछड़ा रह गया है। कोरबा के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वालों को सामान्य खरीददारी करने के लिये भी कोरबा आना पड़ता है। 


अपनी कोरबा यात्रा में सिर्फ कोयला खदान के अलावा लगभग सब देख लिया।फोटो में जो पहाड़ी दिख रही वो कोयला खनन से निकली मिट्टी है, ऐसी कई पहाड़िया कोरबा में दिख जायेंगी। अब कहीं गड्ढ़ा खोदेंगे तो टीले/पहाड़ी तो बनने ही हैं। ये पहाड़िया इस बात की गवाह हैं कि दो तीन दशक में यहाँ से कोयला खत्म हो जायेगा। कोरबा तभी तक रहेगा जब तक वहाँ कोयला रहेगा, कोयला खत्म होते ही कोरबा शहर खत्म हो जायेगा। फिर वहाँ गाँव बचेंगे, हरियाली रहेगी, सांस लेने लायक हवा रहेगी। भले ही कंपनियां और उसमें रहने वाले लोग कहीं और का रुख कर ले। 

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