अकाल की मार से बना शाही महल




बात 1920 की है मारवाड़ राज्य में लगातार तीन साल इंद्र देव ने अपनी वक्र दृष्टि बनाये रखी, वैसे भी मारवाड़ राज्य का बड़ा हिस्सा रेगिस्तान था, सो लगातार तीन साल के सूखे की वजह से क्षेत्र में भंयकर अकाल फैल गया। अकाल के काल से त्राहि त्राहि कर रही जनता ने इससे उबरने के लिये उस समय मारवाड़ राज्य के राजा रहे उम्मेद सिंह से मदद मांगी। अब उम्मेद सिंह कोई भगवान कृष्ण तो थे नहीं जो इंद्र का टेटुआ पकड़ते और कहते पानी बरसा। वैसे भी इंद्र देवराज की उपाधि लेने के बावजूद देवताओं की लिस्ट में सबसे निर्लज्ज और निरीह पता पड़ते हैं। उम्मेद सिंह अपन जैसे ही सामान्य व्यक्ति थे जो किस्मत से राठौर राजघराने में पैदा हो गये थे। 

उस समय भारत में अंग्रेजों की हुकूमत थी पर जिन राजाओं ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली, उन्हें अंग्रेजों ने उस क्षेत्र का टैक्स कलेक्शन एजेंट बनाकर राजपाट चलाने का लाईसेंस दे दिया। मारवाड़ राज्य के शासक राठौर भी ऐसे ही थे जिन्हें आप आजादी के पहले के कांग्रेसी नेताओं की तरह अकलमंद कह सकते हैं, जिन्होंने क्रांतिकारी बनकर शहीद होने की बजाय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बनकर हौले हौले लड़ना बेहतर समझा। 

अकाल से परेशान जनता जो खेती से इतर रोजगार की उम्मीद में उम्मेद सिंह के पास गयी ताकि वो भूखे मरने से बच सके। अब उम्मेद सिंह ठहरे राजा आदमी कोई बनिया तो थे न कि इंडस्ट्री लगवा दे, तो उन्होंने ने शाही महल बनवाने की सोची। मतलब समाजसेवा भी शाही अंदाज में। वैसे किसी बड़े अर्थशास्त्री ने जरुरत पड़ने पर बेरोजगारी दूर करने के लिये गड्ढ़े खाली करके उसे ही भरवाने का विचार भी दिया था, ताकि लोगों को आय तो हो पर वो अकर्मण्यता के शिकार न हो। उस हिसाब से महल बनवाना बहुत बढ़िया निर्णय रहा। 

उसी के कुछ साल पहले अंग्रेजी हुकूमत दिल्ली में देश की नई राजधानी बसा रही थी जिसके लिये लन्दन से आर्किटेक्ट बुलाये गये थे, जिसमें प्रमुख एडविन लुटियन्स थे। दिल्ली का इलीट तबका उसी लुटियन्स जोन को लेकर ही लहालोट रहता है। अब राजा को महल बनाना था तो किसी से कमतर होना बेइज्जती लगती, सो उम्मेद सिंह ने एडविन लुटियन्स के समकक्ष सर वाघन लैनचेस्टर को शाही महल का काम सौंपा। 

आखिरकार 1929 में शाही महल का काम शुरू हुआ, बीच के सालों में अकाल खत्म हुआ या नहीं? इसका पता हमें न लगा। खैर जोधपुर के बाहर चित्तर नाम की पथरीली पहाड़ी पर महल बनाने का काम शुरू हुआ। पहाड़ी पथरीली होने की वजह से वहाँ पानी और दूसरे बिल्डिंग मैटेरियल लाने में बड़ी दिक्कत थी तो वहाँ से मैटेरियल साईट तक समान ढ़ोने के लिये रेल पटरी बिछाई गयी। महल के निर्माण में लगभग 2 से 3 हजार लोगों को रोजगार मिला। 

ढ़ाई दशक बाद 1943 में महल पूरा हुआ जिसमें 347 कमरे थे, जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा रिहायशी महल बनाते थे। शाही महल का नाम है उम्मेद भवन पैलेस। इसे बनवाने वाले राजा उम्मेद सिंह की मौत मात्र चार साल बाद 1947 में हो गयी। उसके बाद मारवाड़ के शासक बने राजा हनुमंत सिंह की मुत्य भी 1952 में पहली लोकसभा में चुने जाने के तुरन्त बाद प्लेन दुर्घटना में हो गयी। उसके बाद 1952 में सिर्फ 4 साल के गज सिंह को राजगद्दी पर बैठाया गया। गज सिंह उम्मेद सिंह के पुत्र हैं और अभी भी राठौर वंश के मुखिया हैं। 

उम्मेद भवन पैलेस फिलहाल तीन हिस्सों में बटा है। एक हिस्से में गज सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं, दूसरे हिस्से में जनता के देखने के लिये संग्रहालय है और तीसरे हिस्से में ताज ग्रुप द्धारा उम्मेद भवन पैलेस नाम से चलाया जा रहा होटल है। अपने महलों में होटल चलाना या चलवाना ही आज की तारीख में अधिकतर राजपरिवारों की कमाई का मुख्य जरिया है। उम्मेद भवन पैलेस में होटल प्रिवी पर्स की कमाई खत्म होने के तुरंत बाद 1971 में खुला था। इसके एवज में राजपरिवार को ताज ग्रुप से मोटा किराया मिलता होगा। वैसे ये लिखने से पहले जिज्ञासावश मैंने होटल का किराया चेक किया, एक दिन का शुरुवाती किराया 55000 हजार से अधिक। सुईट का एक दिन का  किराया 560000। सुईट की दो श्रेणी जिसका नाम महाराजा और महारानी है जिसका किराया साईट पर देने की बजाय फोन नंबर दिये हैं। शायद इनका किराया 10 से 25 लाख के बीच हो। जितने में सामान्य आदमी के लिये जिंदगी भर की छत का जुगाड़ हो जाता है उससे ज्यादा लोग एक दिन की छत के लिये खर्च रहे, मेरे लिये पूंजीवाद का चरम यही है। 

मेरा उम्मेद भवन पैलेस देखना अपने दशक भर पुराने मित्र कुंदन सिंह चौहान के साथ हुआ। उम्मेद भवन पैलेस का संग्रहालय हमने देखा जहाँ बाहर राजा साहब की पुरानी गाड़ियां लाईन से लगी थी जो उनके द्धारा रिटायर करने के बाद वहाँ खड़ी थी। वैसे भी आजकल इथनिक, विंटेज की बड़ी धूम है और ये तो असल वाली गाड़ियां थी। गाड़ियों के बाद अंदर संग्रहालय में गये जहाँ उम्मेद भवन और मारवाड़ राजघराने से जुड़ा अच्छा खासा संग्रह देखने को मिला। कुल मिलाकर उम्मेद भवन पैलेस के संग्रहालय ने मुझे जयपुर के सिटी पैलेस की तरह निराश नहीं किया। 

बाहर निकलते वक्त धूप जा चुकी थी तो आराम से पैलेस को देखा, निसंदेह महलों में इससे भव्य दूसरा अभी तक नहीं देखा। उम्मेद भवन पैलेस के ठीक पीछे शाही परिवार फ्लैट और विला बेच रहा जो जोधपुर में रहने वालों के लिये राजसी जगह के नजदीक रहने का एक मौका जैसा है। 

रात को वापसी के बाद मित्र कुंदन के घर पर शुद्ध राजस्थानी खाना खाया। राजस्थान और गुजरात में खाने में तेल की मात्रा बहुत अधिक होती है। हमारे यहाँ उत्तर प्रदेश में जहाँ सरसों के तेल का उपयोग होता है वही राजस्थान और गुजरात में मूंगफली, कपास और सोया के तेल का उपयोग होता है। खाने की फोटो रोटी आने के पहले की है। 

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