प्रयागराज

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ।
 कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।
अस तीरथपति देखि सुहावा।
सुख सागर रघुबर सुखु पावा।

कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई।
श्री मुख तीरथराज बड़ाई।
करि प्रनामु देखत बन बागा।
कहत महातम अति अनुरागा।

यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी।
बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी।
भरद्वाज आश्रम सब आए।
देखन दसरथ सुअन सुहाए।

ऊपर तीनों गोस्वामी तुलसीदास द्धारा लिखित रामचरितमानस की चौपाई हैं, जो मूलतः वाल्मीकि रामायण से प्रेरित हैं। रामायण मैंने न देखी न पढ़ी पर रामचरितमानस का पाठ घर के माहौल के चलते कई बार किया है। इन तीनों चौपाइयों में मेरे शहर इलाहाबाद के बारे में लिखा है पर हर जगह उसका नाम प्रयाग (तीर्थराज) ही मिलेगा, इलाहाबाद का कही जिक्र तक नहीं। गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1511 में हुआ था और जिस मुगल बादशाह अकबर के इलाही धर्म के चलते शहर का नाम इलाहाबाद पड़ा उनका जन्म 1542 में हुआ था। इलाहाबाद से मेरा भी बड़ा जुड़ाव रहा है फिर भी प्रयागराज होने पर खुशी हो रही क्योंकि ये बदलाव नहीं बल्कि सुधार है।

बाकी ये तर्क देने वाले कि जब कुछ काम नहीं करना तो नाम बदल रहे बस इतना जान ले कि प्रयागराज में डेढ़ साल में इस सरकार ने जितना काम किया है उसका आधा भी किसी पूर्ववर्ती सरकार (जिसमें भाजपा सरकार भी शामिल है) ने नहीं किया है, भले ये प्रधानमंत्री उगलने की खदान रहा हो।

फिर कुछ लोग इलाहाबाद विश्वविद्यालय और हाईकोर्ट के नाम पर कटाक्ष कर रहे वो समझे कि मकसद इलाहाबाद का नाम मिटाना नहीं बल्कि प्रयागराज को लाना था। बाकी अभी भी कलकत्ता विश्वविद्यालय और बांबे हाउस है ही। फिर ऐसे लोगों के हिसाब से नाम में क्या रखा है तो छोड़िये जाने दीजिये, नाम में क्या रखा है।

#प्रयागराज
#मेराशहर
#prayagraj
#mycity

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